प्रसिद्ध भारतीय तबला वादक उस्ताद ज़ाकिर हुसैन का 16 दिसंबर 2024 को सैन फ्रांसिस्को, अमेरिका में निधन हो गया। वे 73 वर्ष के थे और पिछले कुछ समय से इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस (IPF) नामक गंभीर फेफड़ों की बीमारी से पीड़ित थे। उनके निधन की खबर से संगीत प्रेमियों के बीच शोक की लहर फैल गई।
जीवन परिचय: बचपन और प्रारंभिक जीवन
उस्ताद ज़ाकिर हुसैन का जन्म 9 मार्च 1951 को मुंबई में हुआ था। वे महान तबला वादक उस्ताद अल्ला रक्खा के पुत्र थे। संगीत उनके खून में था, और उनके पिता के मार्गदर्शन में उन्होंने कम उम्र से ही संगीत साधना शुरू कर दी थी।
- पहली प्रस्तुति: ज़ाकिर हुसैन ने 12 वर्ष की आयु में पहली बार मंच पर अपनी कला का प्रदर्शन किया।
- वे बचपन से ही अपने तबला वादन की प्रतिभा से लोगों का ध्यान आकर्षित करने लगे थे।
संगीत यात्रा और करियर की शुरुआत
उस्ताद ज़ाकिर हुसैन का संगीत करियर न केवल भारतीय शास्त्रीय संगीत तक सीमित रहा बल्कि उन्होंने पश्चिमी संगीत में भी अपनी अमिट छाप छोड़ी।
- प्रारंभिक उपलब्धि: 1973 में उन्होंने अपनी पहली अंतरराष्ट्रीय प्रस्तुति दी।
- संगीत सहयोग: उन्होंने कई भारतीय और विदेशी संगीतकारों के साथ काम किया। उनका फ्यूज़न संगीत बेहद लोकप्रिय हुआ।
- शांति निकेतन योगदान: उन्होंने विश्वभारती विश्वविद्यालय में भी संगीत के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
लोकप्रिय कृतियाँ
उस्ताद ज़ाकिर हुसैन ने तबला वादन के माध्यम से दुनिया को भारतीय संगीत का अद्भुत अनुभव कराया। उनकी कुछ उल्लेखनीय प्रस्तुतियाँ इस प्रकार हैं:
- शक्ति बैंड: जॉन मैकलॉफलिन के साथ उनका ‘शक्ति’ बैंड बेहद प्रसिद्ध हुआ।
- फिल्म संगीत: उन्होंने ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ और ‘अपहरण’ जैसी फ़िल्मों में संगीत दिया।
- विदेशी संगीत सहयोग: उन्होंने मिकी हार्ट (Grateful Dead) के साथ भी काम किया।
सम्मान और पुरस्कार
उस्ताद ज़ाकिर हुसैन को अपने संगीत योगदान के लिए भारत और विदेश में कई सम्मानों से नवाजा गया। उनके प्रमुख पुरस्कार इस प्रकार हैं:
- पद्मश्री (1988)
- पद्म भूषण (2002)
- पद्म विभूषण (2023)
- ग्रैमी अवार्ड (2009) – विश्व संगीत श्रेणी में
- राष्ट्रीय संगीत सम्मान
- अंतरराष्ट्रीय फ्यूज़न अवार्ड
निधन: एक युग का अंत
16 दिसंबर 2024 को उस्ताद ज़ाकिर हुसैन ने सैन फ्रांसिस्को के अस्पताल में अंतिम सांस ली।
वे इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस (IPF) बीमारी से लंबे समय से लड़ रहे थे।
उनके निधन पर प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, कलाकारों और संगीत प्रेमियों ने गहरा शोक व्यक्त किया।
हुसैन भारतीय संगीत की एक अनमोल धरोहर थे। उनके योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकेगा। उनका निधन भारतीय संगीत जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है।”
- राष्ट्रपति का संदेश: “उस्ताद ज़ाकिर हुसैन के निधन से भारतीय संगीत की दुनिया एक महान व्यक्तित्व से वंचित हो गई। उन्होंने अपनी कला के माध्यम से भारतीय संगीत को वैश्विक पहचान दिलाई।”
उस्ताद ज़ाकिर हुसैन की विशेषताएँ
उस्ताद ज़ाकिर हुसैन की तबला वादन की शैली न केवल भारतीय शास्त्रीय संगीत में बल्कि वैश्विक संगीत समुदाय में भी बेहद लोकप्रिय थी। उनकी विशेषताएँ निम्नलिखित थीं:
1. तकनीकी दक्षता
उस्ताद ज़ाकिर हुसैन के तबला वादन की तकनीकी दक्षता अद्वितीय थी। वे तल, मुरकी, बायां और दायां हाथ की बेहतरीन समन्वय के लिए प्रसिद्ध थे। उनका प्रत्येक नोट संगीत के सिद्धांतों के अनुसार सटीक और निपुण था।
2. फ्यूज़न संगीत
वे भारतीय शास्त्रीय संगीत के साथ-साथ जैज़, रॉक, और वर्ल्ड म्यूजिक के फ्यूज़न में भी पारंगत थे। उनका फ्यूज़न संगीत दुनिया भर में सराहा गया, जिससे भारतीय संगीत को एक अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान मिली।
3. विश्वभर में प्रसिद्धि
उनकी प्रसिद्धि केवल भारत तक सीमित नहीं रही। वे दुनिया भर के संगीत समारोहों और फेस्टिवल्स में अतिथि कलाकार के रूप में आमंत्रित किए जाते थे। उनके संगीत यात्राओं और प्रदर्शन ने भारतीय संगीत को पश्चिमी दुनिया में एक विशेष स्थान दिलाया।
उनकी विरासत और यादें
उस्ताद ज़ाकिर हुसैन ने अपनी संगीत यात्रा के दौरान न केवल भारतीय शास्त्रीय संगीत को समृद्ध किया, बल्कि उन्होंने पश्चिमी संगीत के साथ भारतीय संगीत की नई दिशा को भी प्रेरित किया। उन्होंने अपनी कला के जरिए दुनिया को यह संदेश दिया कि संगीत सभी सीमाओं और संस्कृतियों के बीच एक पुल का कार्य करता है।
उनकी तबला वादन की कला, उनके संगीत के प्रति समर्पण, और उनकी सहजता हमेशा उनकी यादों के रूप में जीवित रहेगी। वे संगीत जगत के एक अविस्मरणीय सितारे बने रहेंगे।
निधन के बाद श्रद्धांजलि
उनकी मृत्यु के बाद संगीत जगत के कई दिग्गजों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है।
किशोरी आमोणकर, हरिप्रसाद चौरसिया, उस्ताद रईस खान, और कई अन्य कलाकारों ने कहा कि “उस्ताद ज़ाकिर हुसैन की विदाई एक संगीत युग के अंत का प्रतीक है, लेकिन उनकी धुनें और उनके द्वारा छोड़ी गई धरोहर सदियों तक जीवित रहेंगी।”
कुल मिलाकर, उस्ताद ज़ाकिर हुसैन का जीवन संगीत के प्रति एक अभूतपूर्व समर्पण का प्रतीक था। उनके योगदान से भारतीय संगीत को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने का कार्य किया, और वे हमेशा अपनी कला से प्रेरणा देने वाले रहेंगे। उनकी यात्रा को याद करते हुए, हम यह कह सकते हैं कि संगीत के इस महान उस्ताद का योगदान अमर रहेगा।
निधन के बाद अंतिम संस्कार
उस्ताद ज़ाकिर हुसैन का अंतिम संस्कार 18 दिसंबर 2024 को सैन फ्रांसिस्को में किया गया। उनके परिवार, दोस्तों और प्रशंसकों की मौजूदगी में उनकी अंतिम विदाई दी गई। उनकी पार्थिव देह को पूरे सम्मान के साथ दफनाया गया, और उनका परिवार इस दुखद घड़ी में एकजुट रहा। उनके प्रशंसकों और संगीत प्रेमियों ने इस महान कलाकार को श्रद्धांजलि अर्पित की।
उस्ताद ज़ाकिर हुसैन का जीवन एक प्रेरणा है, और उनकी ध्वनि हमेशा हमारे दिलों में गूंजती रहेगी। उनके योगदान को शब्दों में बयां करना कठिन है, लेकिन उनकी संगीत धारा हमेशा हमारे साथ रहेगी।
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